1. कहने को तो बैगा आदिवासी समुदाय संरक्षित जनजाति है लेकिन इसे संरक्षित करने के साथ इस समुदाय को मुख्यधारा से जोडने की कवायद बेहद कमजोर साबित हो रही है। क्योकि इस समुदाय के बीच शिक्षा के प्रति जागरूकता की बेहद कमी देखने मिल रही है। जबकि जीवन का एक मात्र आधार शिक्षा ही है जिसके बलबूते ही मानव अपना और अपने समाज का भविष्य निर्धारित करता है। लेकिन अभी तक इनके उत्थान और विकास के नाम की कोई मजबूत कील तक नही ठोकी जा सकी है। जहां परिणाम स्वरूप वर्तमान में बैगा आदिवासी क्षेत्रो में लगातार शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। इसी तरहा का एक जीता जागता मामला बिरसा विकासखंड के पण्ड्रापानी गांव का सामने आया है। जहां १२०० की आबादी वाले इस गांव में कुल २९० मकान है जिनमें १२५ मकान बैगा परिवारो के है। लेकिन यहां बैगा परिवारो के बच्चो में शिक्षा का स्तर बेहद कमजोर है। 2. अखिल भारतीय रविदासिया धर्म संगठन जिला शाखा बालाघाट द्वारा संत रविदास की ६४४ जयंती हर्षोल्लास से आस्थापूर्वक मनाई गई। जयंती कार्यक्रम वार्ड नंबर १३ बूढ़ी स्थित संत रविदास सांस्कृतिक भवन मं आयोजित किया गया। इस अवसर पर उपस्थितजनों के द्वारा संत रविदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पूजा अर्चना की गई। बताया गया कि संत रविदास की हर्षोल्लास से जंयती मनाई गई। संत रविदास मंदिर में पूजा अर्चना कर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भंडारा का भी आयोजन किया गया। तेंदुपत्ता शाखकर्तन की बैठक सम्पन्न 3. वन परिक्षेत्र कार्यालय में २७ फरवरी को तेंदूपत्ता शाखकर्तन के संबंध में बैठक रखी गई बैठक में तेंदूपत्ता शाखकर्तन के संबंध में जानकारी दिया गया बैठक में उपस्थित अधिकारियों ने बताया कि इस वर्ष तेंदूपत्ता शाखकर्तन की दर ५० रुपए प्रति मानक बोरा है। तथा शखकर्तन का कार्य १० मार्च से १९ मार्च तक किया जाएगा जिसमे धारदार कुल्हाड़ी तथा फावड़ा से ऐसा काटना है जिससे उत्कृष्ट तेंदूपत्ता प्राप्त हो सके। इस वर्ष सबसे अच्छा कार्य करने वाली समिति को वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। पपीता एवं सब्जियों की खेती के लिए मिसाल बने रहे हैं हेमलता व छगनलाल बिसेन 4. बालाघाट जिले में परंपरागत रूप से धान की खेती की जाती है। लेकिन धान की खेती लागत की तुलना में मुनाफा बहुत कम देती है। इस कारण यह घाटे का सौदा बन जाती है। लेकिन किसान परंपरा से हटकर नगदी फसलों पर घ्यान दे तो कम समय में अच्छी खासी आय अर्जित की जा सकती है। ऐसा ही कुछ बालाघाट तहसील के ग्राम सालेटेका की हेमलता व उनके पति छगनलाल बिसेन ने कर दिखाया है। उनके द्वारा कृषि के क्षेत्र में लीक से हटकर किये जा रहे कार्य अनुकरणीय एवं अन्य किसानों के लिए प्रेरणादायक है। 5. ''चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात'' यह कहावत इन दिनो बालाघाट जिले के अति नक्सल प्रभावित गांव राशिमेटा में चरितार्थ हो रही है जहां बिजली की समस्या और आख मिचौली के खेल से गा्रामीणो का जीना दुभर हो गया है। बिजली पोल, केबल और ट्रांसफार्मर की उपयुक्त सुविधा होने के बाद भी लगभग ६५ मकानो से घिरे अतिनक्सल प्रभावित गांव राशिमेटा में हफ्ते तक बिजली का गुल रहना बिजली विभाग एवं जिम्मेंदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खडे कर रहा है। नक्सल गतिविधियों की दृष्टि से नक्सलियों का गढ कहे जाने वाले राशिमेटा गांव में ग्रामीणो को चांद दिन की चांदगी, फिर अंधेरी रात की तर्ज पर बिजली मुहैया कराई जा रही है, जिससे ग्रामीण बेहद परेशान है। ग्रामीणो का कहना है कि बिजली की समस्या को लेकर कई बार शिकायत भी की जा चुकी है लेकिन समस्या से निजात नही मिली और गांव में अक्सर बिजली गुल ही रहती है। बिजली गुल रहने के कारण उन्हे रात अंधेरे में ही गुजारनी पडती है, जिसका गहरा प्रभाव गांव में अध्यननरत् छात्र छात्राओं को पढता है।