क्षेत्रीय
18-Jun-2021

लाभ का धंधा कहलाने वाली खेती ऐसे ही नहीं लहलहाती है इसे हरा-भरा करने में किसान अपना खून , पसीना की तरह बहाता है , तब कहीं जाकर खेत में फसल तैयार होती है, तीन भाई बहन खेत से ऊपज निकालने के लिए दिन-रात एक कर मेहनत करने में जुटे हैं। खेती करने के संसाधन नहीं होने के कारण तीनों खुद बैलों की जगह हल चलाकर अपने खेत को बीते कई सालों से अपने हिस्से का अनाज निकाल रहे हैं... मामला सीहोर जिले के ग्राम ननकपुर का है...जहां गांव के सागर कुशवाह की 11 साल पहले मौत होने के बाद 3 एकड़ खेती की जिम्मेदारी सागर कुशवाहा के पुत्र शैलेंद्र कुशवाहा पर आ गई। मां मेहनत मजदूरी कर तीन बच्चों का पेट पालती है गरीबी और तंगहाली के कारण आधुनिक पद्धति से खेती करने में असमर्थ होने के कारण शैलेंद्र खुद खेती-बाड़ी कर रहे हैं। बेल या अन्य संसाधन नहीं होने के कारण मजबूरी में 16 वर्षीय बहन नेहा और 15 वर्षीय बहन को बैलों की जगह हल मे जोत कर सवार रहा हैं। बाईट - हालत यह है कि शैलेंद्र अपनी मां और दो बहनों के साथ गांव में बने कच्चे मकान में रहता है उसने आवास योजना को लेकर आवेदन भी किया था, लेकिन अब तक आवास योजना का लाभ भी नहीं मिला... इस कारण मजबूरी से पूरे परिवार को कच्चे मकान में रहना पड़ रहा है ...


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