मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज (जंगल वाले बाबा) ने, कर्नाटक के बेलगांव जिले के जुगुल ग्राम में यम सल्लेखना का नियम लिया।उन्होंने चारों प्रकार के आहार का दान कर दिया है। वह अपने मृत्यु महोत्सव के अंतिम चरण की ओर अग्रसर हो गए हैं।11 अक्टूबर को उन्होंने दो अंजुली जल के रूप में अंतिम बार आहार लिया था। 19 सितंबर को मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज ने नियम सल्लेखना का व्रत धारण किया था। यम सल्लेखना का नियम लेने के पूर्व उन्होंने अपने गुरु, परम पूज्य 108 श्री आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चरणों में शत-शत प्रणाम करते हुए सभी मुनि संघों का स्मरण करते हुए, नमोस्तु बोला। उसके बाद उन्होंने यम सल्लेखना का व्रत लेते हुए कहा कि उन्होंने चारों प्रकार के आहार का त्याग, मृत्यु पर्यंत तक के लिए कर दिया है। जंगल वाले बाबा ने ब्रह्मांड की सभी जीवों, अपने भक्तों और सेवा करने वाले मुनिराजों, ब्रह्मचारी भैया से क्षमा मांगते हुए,अपनी अंतिम इच्छा को प्रगट की। मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज ने अंतिम इच्छा के बारे में बोलते हुए कहा, जब तक मेरी सांसे चल रही है। मेरा चिंतन चल रहा है। शुद्ध चेतना- शुद्ध ज्ञान- शुद्ध आत्म ध्यान के साथ में खडगासन मुद्रा में अंतिम सांस लूं। इसके लिए उन्होंने सल्लेखना करा रहे जैन मुनियो, ब्रह्मचारी भैया एवं भक्तों से उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने का निवेदन किया। मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज अपने जन्म स्थल जुगल, ग्राम में चातुर्मास करने के लिए पहुंचे थे।यहीं पर उनका स्वास्थ्य खराब हुआ। यहीं पर उन्होंने नियम सल्लेखना तथा यम सल्लेखना का नियम लिया।अपनी पूर्ण चैतन्य अवस्था में वह मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में उनके अंतिम दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। उनके भक्त उनके एक दर्शन को पाने के लिए लालायित हैं। वहीं मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज भी अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर उन्हें अभिभूत कर रहे हैं। यह दृश्य सभी को, ना केवल रोमांचित कर रहा है।वरन जैन मुनि किस तरह मृत्यु का वरण करते हैं। यह देख कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। रोजाना हजारों की संख्या में भक्त और श्रद्धालु उनके दर्शन करने पहुंच रहे हैं